Tuesday, January 18, 2011

ग़ज़ल

अक्सर उसके नाम की कविता लिखता हूँ।
उस जादूगर श्याम की कविता लिखता हूँ।
मंदिर में लिखता हूँ हमद खुदा की तो,
मस्जिद में मैं राम की कविता लिखता हूँ।
होश में जाने क्या क्या लिखता रहता हूँ,
पागलपन में काम की कविता लिखता हूँ।
लिखता हूँ आगाज़ मोहब्बत का हरदम,
नफरत क अंजाम की कवुइता लिखता हूँ।
क्यों खुद कोई चढ़ जाता है फांसी पर,
दिल में उठे कोहराम की कविता लिखता हूँ।
दंभ, द्वेष, छल, पाखंडों से दूर है जो,
प्यार के उस पैगाम की कवइत लिखता हूँ।
कलम न झुकने दी सत्ता की ड्योढ़ी पर,
भारत के अवाम की कविता लिखता हूँ।
कबीरा, सूर, रहीम कभी, रसखान कभी,
तुलसी से खैय्याम की कविता लिखता हूँ।