एक मुट्ठी में शाम इक में सहर रखता है।
बिना निग़ाहों के ही सब पे नज़र रखता है।।
वक़्त से सीख लो ऐ दोस्त! बदलने का सबक़,
वक़्त ख़ुद को भी बदलने का हुनर रखता है।।
लोग कहते हैं कि आवाज़ तक नहीं होती,
उसकी लाठी में वो गज़ब का असर रखता है।।
ऐसे बन्दे पे बरसती हैं बरक़तें उसकी,
ज़हनोदिल में जो उसे आठों पहर रखता है।।
बिना निग़ाहों के ही सब पे नज़र रखता है।।
वक़्त से सीख लो ऐ दोस्त! बदलने का सबक़,
वक़्त ख़ुद को भी बदलने का हुनर रखता है।।
लोग कहते हैं कि आवाज़ तक नहीं होती,
उसकी लाठी में वो गज़ब का असर रखता है।।
ऐसे बन्दे पे बरसती हैं बरक़तें उसकी,
ज़हनोदिल में जो उसे आठों पहर रखता है।।