Sunday, June 4, 2017

ग़ज़ल- जब तलक उल्फत न थी...

https://www.youtube.com/watch?v=ys2-M8HaCVE
जब तलक़ उल्फ़त न थी क्या दर्द है जाना न था!
मेरे हांथों में कलम रहता था पैमाना न था!!

अब गले पड़ता है तो फिर होते हो नाशाद क्यों,
यूँ था तो फिर शेख़ जी ऊँगली को पकड़ाना न था!!

या तो करनी ही न थी तुझको मोहब्बत या तो फिर,
ओखली में देके सर चोटों से घबराना न था!!

मेहरबान वो हो गया होता बस इतनी शर्त थी,
हाँ-हुजूरी करनी थी सच उसको बतलाना न था!!

उसको पाने की तड़प दैर-ओ-हरम तक ले गयी,
दिल में ही बसता है वो दिल का सुकूँ माना न था!!

दोस्तों उल्फत में वो था चाहता मेरा ज़मीर,
पास मेरे जाँ से बेहतर कोई नज़राना न था!!

कितने है जो प्यार से मरहम लगायेंगे बता,
अंजुमन में हर किसी को ज़ख्म दिखलाना न था!!

आँखों के "बादल" बरस ही जाने थे लेकिन मुझे,
आँसुओं की आंच से पत्थर को पिघलाना न था!!

-विजय शुक्ल बादल