नफ़रतें जब भी बढ़ीं बरबाद सब कुछ कर गयी हैं,
इसलिए पहुँचायें, आओ मिलके पैग़ाम-ए-मोहब्बत!
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दिल्ली में जो हो रहा है, वह सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के बेलगाम लोगों के द्वारा की जाने वाली अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय राजनीति का परिणाम है! मेरा स्पष्ट रूप से मानना है कि इस समय प्रत्येक भारतीय को हिंदू मुस्लिम के दृष्टिकोण से ऊपर उठकर मानव होने के नाते मानवता के पक्ष में खड़ा होना चुनना चाहिए और इस समय मानवता की मांग ये है कि किसी भी राजनेता के किसी भी बयान को बहुत ही ध्यान से सुने और अगर उसमें संकुचित राजनीतिक सरोकारों की बू आए तो उसमें मानवीय विवेक का उपयोग कर स्वयं सुनिश्चित करें कि आप कहीं किसी राजनीतिक खेल का हिस्सा तो नहीं बनने जा रहे! ज़रा सोचिए, कहीं आप किसी के हाथ की कठपुतली तो नहीं बन रहे हैं? मेरा ऐसा कहने के पीछे कुछ कारण है! सबसे पहले जो कारण मैं आपके साथ साझा करना चाहता हूँ, वह यह है कि सी ए ए के विरोध में 70 से अधिक दिनों से हज़ारों महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ पूरी सर्दियाँ सड़क पर काट देती हैं और यह विरोध एक ऐसे कानून के लिए है जिससे भारतीय महिलाएं या भारतीय मुसलमान ही क्या, कोई भी इकलौता भारतीय नागरिक प्रभावित होने वाला नहीं है! यह बात सी ए ए का ड्राफ्ट भी कहता है और स्वयं भारत के प्रधानमंत्री भी इस बात को तीन बार दोहरा चुके हैं! सी ए ए पर प्रधानमंत्री के स्पष्टीकरण के बयानों को सुनने के बावजूद आज भी शाहीन बाग में हजारों की संख्या में महिलाएं उपस्थित ही नहीं है, पुरजोर ढंग से सीए के विरोध में अपनी आवाज बुलंद करती भी देखी जा सकती हैं! जारी हुए वीडिओज़ यह दिखाते हैं कि सी ए ए का विरोध करती हुई तमाम महिलाओं में से अधिकांश को तो चंद स्वार्थीजनों के द्वारा दी गयी जानकारी के सिवा सी ए ए की सामान्य जानकारी भी नहीं है? फिर घर परिवार की जिम्मेदारियाँ दरकिनार कर इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं कैसे शाहीन बाग में अपनी मांग मनवाने के लिए इस शिद्दत से अड़ सकती हैं? स्पष्ट है घर की प्रतिदिन की ज़रूरतों की कीमत पर मुस्लिम पुरुषों ने उन्हें अनुमति दे रखी है! अब सवाल यह है कि भारतीय मुस्लिम जनों को बिल्कुल भी प्रभावित न करने वाले सी ए ए का ऐसा कौन सा डर दिखाया गया है कि वह आज सरकार के समक्ष शक्तिप्रदर्शन को मज़बूर हैं?
एक दूसरा दृश्य यह भी है कि जहां एक तरफ सी ए ए के विरोध में पूरे देश में कई शाहीनबाग बन चुके हैं, हजारों की तादाद में महिलाएं बच्चे सीए का विरोध करते देखे जा सकते हैं, वही दूसरी ओर सी ए ए के समर्थन में भी पूरे देश आयोजित सैकड़ों रैलियों में हजारों की तादाद में लोग सीएएए का समर्थन भी करते नजर आ रहे हैं! सीए के समर्थन में की जाने वाली इन रैलियों में मीडिया पर जारी वीडिओज़ के माध्यम से कुछ ऐसे लोग भी देखे गए जिन्हें सी ए ए का फुल फॉर्म भी नहीं पता था! अब जिस बुनियादी प्रश्न की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं वह यह है कि कौन है जो रोज़ी रोटी की ज़द्दोज़हद में लगे भारत के हज़ारों गरीबों और बेरोजगारों को ज़रूरत की जंग छोड़कर सड़कों पर भीड़ का हिस्सा बनने को विवश कर रहा है? यहाँ यह भी स्पष्ट कर दूँ कि भारत के सम्मानित नागरिक होने के नाते हमें यह पूरा अधिकार है कि हम सरकार द्वारा लाए गए किसी कानून का समर्थन करें या उसका शांतिपूर्ण ढंग से विरोध! किंतु मात्र कुछ लोगों के आवाहन पर किसी कानून को बिना जाने, बिना समझे उसके विरोध अथवा समर्थन के प्रदर्शन कार्यक्रमों में प्रतिभाग करने से पूर्व यह विचार आवश्यक है कि कहीं हम बरसों से भारत की पहचान रही हिंदू-मुस्लिम एकता, आपसी भाईचारा और अमन को खत्म करने की ओछी सियासत का हिस्सा तो नहीं बनने जा रहे?
उक्त मन्तव्य को सुदृढ सिद्ध करने के उद्देश्य से अब मैं एक तथ्य साभार Dhruv Gupt सर की फेसबुक पोस्ट से यहाँ प्रस्तुत करना चाहूँगा! उन्होंने कहा कि अगर हम राजनीति के क्षेत्र के धुर-विरोधी नेताओं को सभी सुविधाओं से युक्त एक बड़े कमरे में बंद कर दें और 24 घंटे बाद हम पाएंगे कि वह आपस में मिलजुल कर के एक दूसरे से हंसी ठिठोली करते हुए जाम से जाम टकराते हुए बिरयानी साझा कर रहे होंगे! दूसरी ओर, कल्पना कीजिए, इन्हीं धुर विरोधी राजनेताओं के समर्थकों को 24 घंटों के लिए एक बड़े हॉल में बंद कर दिया जाए तो क्या क्या परिणाम हो सकते हैं? सम्भव है बात आपसी बहस से शुरू होकर सिरफुटौव्वल से होकर कुछ एक की जान लेकर भी ख़त्म न हो!
ये पक्ष विपक्ष के समर्थकों में इतनी कटुता क्यों है? कौन भर रहा है ये नफ़रत का ज़हर हमारी नसों में? देश का दुर्भाग्य यह है कि भारत के राजनेताओं को हर घटना-दुर्घटना में राजनीतिक अवसर के सिवा और कुछ नज़र ही नहीं आता! मीडिया भी अपनी खबरों वीडियो फुटेज के ज़रिए आग में तेल डालने जैसे चरित्र के सिवा कुछ और प्रदर्शित करता नहीं दिखता! ख़ैर राजनीति करना राजनेताओं का अधिकार है वो शौक़ से राजनीति करें! टीआरपी बढ़ाने जैसी हर ख़बर दिनभर चैनलों पर चलाकर व्यवसाय करना मीडिया का अधिकार है वो अपना कार्य बदस्तूर जारी रखने को स्वतंत्र है! किन्तु हे भारत के सम्मानित नागरिक, आप से हाथ जोड़कर मात्र इतनी सी अपील है कि आप किसी शांतिपूर्ण समर्थन/विरोध प्रदर्शन अथवा किसी भी गतिविधि का हिस्सा बनते समय यह अवश्य सोच-विचार कर लें कि क्या आप स्वयं अपनी इच्छा से ऐसा करना चाहते हैं? अब हर सच्चे देशभक्त को अपने मर्यादित आचरण से यह स्पष्ट संदेश देना ही होगा है कि देश के सौहार्द और अमन को क्षति पहुँचाने वाली अथवा देशहित को दरकिनारकर संकुचित स्वार्थ से सनी कोई भी राजनीति देश में अगर की जाएगी तो आम भारतीय उसका हिस्सा नहीं बनेगा!
इतनी दुआ क़ुबूल हो मेरी मेरे मालिक,
चैन-ओ-अमन शहर में हमेशा बना रहे!
©विजयशुक्लबादल
#BigNo2NarrowPolitics
#IndiaForPeaceAndBrotherhood
#delhi_voilence
चित्र India today की website से साभार
इसलिए पहुँचायें, आओ मिलके पैग़ाम-ए-मोहब्बत!
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दिल्ली में जो हो रहा है, वह सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के बेलगाम लोगों के द्वारा की जाने वाली अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय राजनीति का परिणाम है! मेरा स्पष्ट रूप से मानना है कि इस समय प्रत्येक भारतीय को हिंदू मुस्लिम के दृष्टिकोण से ऊपर उठकर मानव होने के नाते मानवता के पक्ष में खड़ा होना चुनना चाहिए और इस समय मानवता की मांग ये है कि किसी भी राजनेता के किसी भी बयान को बहुत ही ध्यान से सुने और अगर उसमें संकुचित राजनीतिक सरोकारों की बू आए तो उसमें मानवीय विवेक का उपयोग कर स्वयं सुनिश्चित करें कि आप कहीं किसी राजनीतिक खेल का हिस्सा तो नहीं बनने जा रहे! ज़रा सोचिए, कहीं आप किसी के हाथ की कठपुतली तो नहीं बन रहे हैं? मेरा ऐसा कहने के पीछे कुछ कारण है! सबसे पहले जो कारण मैं आपके साथ साझा करना चाहता हूँ, वह यह है कि सी ए ए के विरोध में 70 से अधिक दिनों से हज़ारों महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ पूरी सर्दियाँ सड़क पर काट देती हैं और यह विरोध एक ऐसे कानून के लिए है जिससे भारतीय महिलाएं या भारतीय मुसलमान ही क्या, कोई भी इकलौता भारतीय नागरिक प्रभावित होने वाला नहीं है! यह बात सी ए ए का ड्राफ्ट भी कहता है और स्वयं भारत के प्रधानमंत्री भी इस बात को तीन बार दोहरा चुके हैं! सी ए ए पर प्रधानमंत्री के स्पष्टीकरण के बयानों को सुनने के बावजूद आज भी शाहीन बाग में हजारों की संख्या में महिलाएं उपस्थित ही नहीं है, पुरजोर ढंग से सीए के विरोध में अपनी आवाज बुलंद करती भी देखी जा सकती हैं! जारी हुए वीडिओज़ यह दिखाते हैं कि सी ए ए का विरोध करती हुई तमाम महिलाओं में से अधिकांश को तो चंद स्वार्थीजनों के द्वारा दी गयी जानकारी के सिवा सी ए ए की सामान्य जानकारी भी नहीं है? फिर घर परिवार की जिम्मेदारियाँ दरकिनार कर इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं कैसे शाहीन बाग में अपनी मांग मनवाने के लिए इस शिद्दत से अड़ सकती हैं? स्पष्ट है घर की प्रतिदिन की ज़रूरतों की कीमत पर मुस्लिम पुरुषों ने उन्हें अनुमति दे रखी है! अब सवाल यह है कि भारतीय मुस्लिम जनों को बिल्कुल भी प्रभावित न करने वाले सी ए ए का ऐसा कौन सा डर दिखाया गया है कि वह आज सरकार के समक्ष शक्तिप्रदर्शन को मज़बूर हैं?
एक दूसरा दृश्य यह भी है कि जहां एक तरफ सी ए ए के विरोध में पूरे देश में कई शाहीनबाग बन चुके हैं, हजारों की तादाद में महिलाएं बच्चे सीए का विरोध करते देखे जा सकते हैं, वही दूसरी ओर सी ए ए के समर्थन में भी पूरे देश आयोजित सैकड़ों रैलियों में हजारों की तादाद में लोग सीएएए का समर्थन भी करते नजर आ रहे हैं! सीए के समर्थन में की जाने वाली इन रैलियों में मीडिया पर जारी वीडिओज़ के माध्यम से कुछ ऐसे लोग भी देखे गए जिन्हें सी ए ए का फुल फॉर्म भी नहीं पता था! अब जिस बुनियादी प्रश्न की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं वह यह है कि कौन है जो रोज़ी रोटी की ज़द्दोज़हद में लगे भारत के हज़ारों गरीबों और बेरोजगारों को ज़रूरत की जंग छोड़कर सड़कों पर भीड़ का हिस्सा बनने को विवश कर रहा है? यहाँ यह भी स्पष्ट कर दूँ कि भारत के सम्मानित नागरिक होने के नाते हमें यह पूरा अधिकार है कि हम सरकार द्वारा लाए गए किसी कानून का समर्थन करें या उसका शांतिपूर्ण ढंग से विरोध! किंतु मात्र कुछ लोगों के आवाहन पर किसी कानून को बिना जाने, बिना समझे उसके विरोध अथवा समर्थन के प्रदर्शन कार्यक्रमों में प्रतिभाग करने से पूर्व यह विचार आवश्यक है कि कहीं हम बरसों से भारत की पहचान रही हिंदू-मुस्लिम एकता, आपसी भाईचारा और अमन को खत्म करने की ओछी सियासत का हिस्सा तो नहीं बनने जा रहे?
उक्त मन्तव्य को सुदृढ सिद्ध करने के उद्देश्य से अब मैं एक तथ्य साभार Dhruv Gupt सर की फेसबुक पोस्ट से यहाँ प्रस्तुत करना चाहूँगा! उन्होंने कहा कि अगर हम राजनीति के क्षेत्र के धुर-विरोधी नेताओं को सभी सुविधाओं से युक्त एक बड़े कमरे में बंद कर दें और 24 घंटे बाद हम पाएंगे कि वह आपस में मिलजुल कर के एक दूसरे से हंसी ठिठोली करते हुए जाम से जाम टकराते हुए बिरयानी साझा कर रहे होंगे! दूसरी ओर, कल्पना कीजिए, इन्हीं धुर विरोधी राजनेताओं के समर्थकों को 24 घंटों के लिए एक बड़े हॉल में बंद कर दिया जाए तो क्या क्या परिणाम हो सकते हैं? सम्भव है बात आपसी बहस से शुरू होकर सिरफुटौव्वल से होकर कुछ एक की जान लेकर भी ख़त्म न हो!
ये पक्ष विपक्ष के समर्थकों में इतनी कटुता क्यों है? कौन भर रहा है ये नफ़रत का ज़हर हमारी नसों में? देश का दुर्भाग्य यह है कि भारत के राजनेताओं को हर घटना-दुर्घटना में राजनीतिक अवसर के सिवा और कुछ नज़र ही नहीं आता! मीडिया भी अपनी खबरों वीडियो फुटेज के ज़रिए आग में तेल डालने जैसे चरित्र के सिवा कुछ और प्रदर्शित करता नहीं दिखता! ख़ैर राजनीति करना राजनेताओं का अधिकार है वो शौक़ से राजनीति करें! टीआरपी बढ़ाने जैसी हर ख़बर दिनभर चैनलों पर चलाकर व्यवसाय करना मीडिया का अधिकार है वो अपना कार्य बदस्तूर जारी रखने को स्वतंत्र है! किन्तु हे भारत के सम्मानित नागरिक, आप से हाथ जोड़कर मात्र इतनी सी अपील है कि आप किसी शांतिपूर्ण समर्थन/विरोध प्रदर्शन अथवा किसी भी गतिविधि का हिस्सा बनते समय यह अवश्य सोच-विचार कर लें कि क्या आप स्वयं अपनी इच्छा से ऐसा करना चाहते हैं? अब हर सच्चे देशभक्त को अपने मर्यादित आचरण से यह स्पष्ट संदेश देना ही होगा है कि देश के सौहार्द और अमन को क्षति पहुँचाने वाली अथवा देशहित को दरकिनारकर संकुचित स्वार्थ से सनी कोई भी राजनीति देश में अगर की जाएगी तो आम भारतीय उसका हिस्सा नहीं बनेगा!
इतनी दुआ क़ुबूल हो मेरी मेरे मालिक,
चैन-ओ-अमन शहर में हमेशा बना रहे!
©विजयशुक्लबादल
#BigNo2NarrowPolitics
#IndiaForPeaceAndBrotherhood
#delhi_voilence
चित्र India today की website से साभार