ग़ज़ल
वो जो वादे पे आ नहीं सकता !
सितम है क्या जो ढा नहीं सकता!
मेरा होकर निभा नहीं सकता!
मुझे अपना बना नहीं सकता!
लाख फ़ितरत में फ़रामोशी हो,
पर तू मुझको भुला नहीं सकता!!
तू ज़माने को घूम आ तुझको,
दूसरा कोई भा नहीं सकता!
मेरे लिए लिखी गई जो ग़ज़ल,
वो कोई और गा नहीं सकता!
मेरी किस्मत में ही नहीं जो उसे,
कोशिशें कर के पा नहीं सकता!
मेरा नहीं है जो, रुकेगा नहीं,
जो मेरा है वो जा नहीं सकता!
©विजयशुक्लबादल