Wednesday, June 22, 2016
Saturday, May 21, 2016
शिक्षक
शिक्षक कौन है?
वह, जो राष्ट्र के भविष्य (अर्थात बच्चों) के भविष्य का निर्माता है
अथवा वह,जो है असंतुष्ट,
अपने ही वर्तमान से?
वह, जो कभी बनकर रामकृष्ण परमहंस,
उपहार स्वरुप दे देता है,
जगती को विवेकानंद सरीखा व्यक्तित्व?
अथवा वह जो रहता है प्रतीक्षारत, संतुष्ट होने को,
शिक्षक दिवस पर छात्र-छात्राओं द्वारा दिए जाने वाले उपहारों के अभिदान से?
वह, जो कभी बनकर राधकृष्णन, राजकोष में कर देता है आधा वेतन दान?
अथवा वह,
जो लेकर पूरा वेतन
बनता जा रहा है राजकोष पर बोझ,
कर रहा है शिक्षण संहिता का अपमान?
शिक्षक है तो है ऑक्सफोर्ड
जो किसी जंगल में,
कुछ बच्चों के साथ,
चुनता है
ज्ञान की खोज की एक अनवरत यात्रा पर निकलना!
जिसकी बढ़ती प्रसिद्धि के चलते,
जब स्वयं राजा भी चाहता है उससे मिलना,
आर्थिक सहायता का सन्देश देकर भेजता है एक दूत,
किन्तु पाकर यह उत्तर, अस्वीकृति का भी,
हो जाता है अभिभूत,
"मैंने मेरे शिष्यों को कहा है कि ज्ञान होता है सबसे बड़ा!
आएंगे अगर आप, सम्मान में आपके होना होगा मुझे खड़ा,
इसलिए
हृदयतल से
स्वीकृत हैं आपकी सदिच्छाएं और शुभकामनाये,
किन्तु आपसे है निवेदन कृपा कर यहाँ न आएं!"
ऑक्सफोर्ड की अपने शिष्यों के प्रति समर्पण की भावना को देखकर,
होकर नतमस्तक राजा भेजता है यह प्रतिउत्तर,
'जो भगवान् से बड़ा है,
राजा से भी बड़ा रहेगा,
राजा अब आएगा अवश्य पर आपके सम्मान में स्वयं खड़ा रहेगा"
ये है शिक्षक जो सोच में इतना बड़ा और महान है,
फिर वह कौन है?
जिसे अपनी चारित्रिक मर्यादा तक का न ध्यान है,
शिक्षक क्यों सरकार अथवा प्रबंधसमिति की चिरौरी कर करता रहता है!
तुच्छ व्यक्तिगत लाभों की लालसा में अपने सम्मान की अवहेलना सहता रहता है!
माना की सरकारों/ प्रबंध समितियों में व्याप्त मक्कारी बहुत है,
तुझे भी अपने ढंग से जीने का अधिकार है,
पर रखना ध्यान,
बतौर शिक्षक तुझ पर ज़िम्मेदारी बहुत है...!
वह, जो राष्ट्र के भविष्य (अर्थात बच्चों) के भविष्य का निर्माता है
अथवा वह,जो है असंतुष्ट,
अपने ही वर्तमान से?
वह, जो कभी बनकर रामकृष्ण परमहंस,
उपहार स्वरुप दे देता है,
जगती को विवेकानंद सरीखा व्यक्तित्व?
अथवा वह जो रहता है प्रतीक्षारत, संतुष्ट होने को,
शिक्षक दिवस पर छात्र-छात्राओं द्वारा दिए जाने वाले उपहारों के अभिदान से?
वह, जो कभी बनकर राधकृष्णन, राजकोष में कर देता है आधा वेतन दान?
अथवा वह,
जो लेकर पूरा वेतन
बनता जा रहा है राजकोष पर बोझ,
कर रहा है शिक्षण संहिता का अपमान?
शिक्षक है तो है ऑक्सफोर्ड
जो किसी जंगल में,
कुछ बच्चों के साथ,
चुनता है
ज्ञान की खोज की एक अनवरत यात्रा पर निकलना!
जिसकी बढ़ती प्रसिद्धि के चलते,
जब स्वयं राजा भी चाहता है उससे मिलना,
आर्थिक सहायता का सन्देश देकर भेजता है एक दूत,
किन्तु पाकर यह उत्तर, अस्वीकृति का भी,
हो जाता है अभिभूत,
"मैंने मेरे शिष्यों को कहा है कि ज्ञान होता है सबसे बड़ा!
आएंगे अगर आप, सम्मान में आपके होना होगा मुझे खड़ा,
इसलिए
हृदयतल से
स्वीकृत हैं आपकी सदिच्छाएं और शुभकामनाये,
किन्तु आपसे है निवेदन कृपा कर यहाँ न आएं!"
ऑक्सफोर्ड की अपने शिष्यों के प्रति समर्पण की भावना को देखकर,
होकर नतमस्तक राजा भेजता है यह प्रतिउत्तर,
'जो भगवान् से बड़ा है,
राजा से भी बड़ा रहेगा,
राजा अब आएगा अवश्य पर आपके सम्मान में स्वयं खड़ा रहेगा"
ये है शिक्षक जो सोच में इतना बड़ा और महान है,
फिर वह कौन है?
जिसे अपनी चारित्रिक मर्यादा तक का न ध्यान है,
शिक्षक क्यों सरकार अथवा प्रबंधसमिति की चिरौरी कर करता रहता है!
तुच्छ व्यक्तिगत लाभों की लालसा में अपने सम्मान की अवहेलना सहता रहता है!
माना की सरकारों/ प्रबंध समितियों में व्याप्त मक्कारी बहुत है,
तुझे भी अपने ढंग से जीने का अधिकार है,
पर रखना ध्यान,
बतौर शिक्षक तुझ पर ज़िम्मेदारी बहुत है...!
दकियानूसी सोंच
ज़माना आज भी वैसा ही है...दकियानूसी सोच जिसे वो पता नहीं किस चिनौटी में दबा के बैठा रहता है... (ज्ञानवर्धक शब्द
चिनौटी अर्थात तम्बाकू रखने की डिबिया😝😝)
लेकिन समाज की ये दकियानूसी सोच आँख कान गला की बीमारिया और कैंसर फ़ैलाने वाली तम्बाकू से भी ज़यादह खतरनाक है...
दरअसल हुआ यूँ कि मेरे यहाँ छुटकू (मेरा भतीजा हर्ष) के मुंडन का प्रीतभोज होना था तो मैंने कहा बुफे (buffet)सिस्टम से खाने की व्यस्था करें...तो कई रिश्तेदारों का मत मेरे मत से असहमत दिखा! गाँव के एक ताऊ कुछ यूँ बोले, "हम का ये गिद्धभोज न समझ आवे... पता नहीं कौन कौन कैसे कैसे खात रहा पिछली बार मुन्ना की बरात मा! हमका तो जमीन पर बिठाल के खिलाओ हाँ! पता नहीं कौन कौन जात का वेटरवा खाना लगावै के खातिर आ जात हैं... हम त न खाब भाई पासी चमार के हाथ का..."
तो मैंने कहा, "ताऊ ये जो शक्कर खाते हो आप पता है आपको? इसको क्या कोई कनौजिया बाजपाई जी आके सूखाते हैं...इसको तो वही...अपने गाँव के हरिजनटोला के सुक्खा, पेरू जैसे मज़दूर भाई ही खम्बारखेरा शुगर मिल में धुप में कभी हाथ कभी पाँव से चला चला के सुखाते हैं...उस शक्कर का तो आप नौरात्र में माँ दुर्गा को बसंदर चढ़ा दिए अब क्याहोगा? देवी नाराज हो जाएँगी अब तो...?"
तो वो फटाक से बोले, "ओकरा पावन ते सक्कर चलावत हम थोड़े ही देखा...""पर ताऊ बिल्ली के आँखे बंद कर लेने से अँधेरा थोड़े हो जाता है, अब तो आपका नवरात्र व्रत टूट ही गया समझो...! ताऊ जी कहाँ आप भी...ज़्यादा पांडित्य खतरे में हो तो ऐसा करेंगे जो पासी चमार वेटर होंगे उनको मोटा मोटा जनेऊ पहना के बड़ा सा तिलक लगा के ले आएंगे फिर तो आपको कोई समस्या नहीं होगी...?" तो बोले, "राम राम ई लड़िका की तउ पढ़ि लिख कई बुद्धि खराब हुइ गयी...राम राम राम राम..." ऐसा कहते हुए वो अपनी चुनौटी से तम्बाकू हथेली पर लेकर मसलते हुए मुझे और नजाने क्या क्या कहते हुए ...आखिर वो चले गए पर अब वो नहीं आएंगे हमारे यहाँ प्रीतिभोज में...उनका जनेऊ हमारे वेटर्स के जनेऊ से पतला जो हो जायेगा न! खैर कहानी ख़त्म! पर बात यहाँ खत्म नही होती, यहीं से शुरू होती है...क्या हरिजन या अन्य नीची जाति के लोग इंसान नहीं? क्या ऊपर वाले ने इनके साथ कोई भेदभाव किया है? सब कुछ वही तो दिया है उसने इन्हें भी जो अन्य जाति के लोगो को दिया तो हम कौन होते है जाति धर्म मजहब केनाम पर भेदभाव फैलाने वाले? सारे भारतीय एक सामान हैं!!!
सोच बदलो, देश बदलो! सब समान हैं, सब इंसान हैं...आओ हम सब समानता के वाहक बनें! जय हिन्द; जय भारत!!!
निवेदक- विजय शुक्ल बादल
9648466384
चिनौटी अर्थात तम्बाकू रखने की डिबिया😝😝)
लेकिन समाज की ये दकियानूसी सोच आँख कान गला की बीमारिया और कैंसर फ़ैलाने वाली तम्बाकू से भी ज़यादह खतरनाक है...
दरअसल हुआ यूँ कि मेरे यहाँ छुटकू (मेरा भतीजा हर्ष) के मुंडन का प्रीतभोज होना था तो मैंने कहा बुफे (buffet)सिस्टम से खाने की व्यस्था करें...तो कई रिश्तेदारों का मत मेरे मत से असहमत दिखा! गाँव के एक ताऊ कुछ यूँ बोले, "हम का ये गिद्धभोज न समझ आवे... पता नहीं कौन कौन कैसे कैसे खात रहा पिछली बार मुन्ना की बरात मा! हमका तो जमीन पर बिठाल के खिलाओ हाँ! पता नहीं कौन कौन जात का वेटरवा खाना लगावै के खातिर आ जात हैं... हम त न खाब भाई पासी चमार के हाथ का..."
तो मैंने कहा, "ताऊ ये जो शक्कर खाते हो आप पता है आपको? इसको क्या कोई कनौजिया बाजपाई जी आके सूखाते हैं...इसको तो वही...अपने गाँव के हरिजनटोला के सुक्खा, पेरू जैसे मज़दूर भाई ही खम्बारखेरा शुगर मिल में धुप में कभी हाथ कभी पाँव से चला चला के सुखाते हैं...उस शक्कर का तो आप नौरात्र में माँ दुर्गा को बसंदर चढ़ा दिए अब क्याहोगा? देवी नाराज हो जाएँगी अब तो...?"
तो वो फटाक से बोले, "ओकरा पावन ते सक्कर चलावत हम थोड़े ही देखा...""पर ताऊ बिल्ली के आँखे बंद कर लेने से अँधेरा थोड़े हो जाता है, अब तो आपका नवरात्र व्रत टूट ही गया समझो...! ताऊ जी कहाँ आप भी...ज़्यादा पांडित्य खतरे में हो तो ऐसा करेंगे जो पासी चमार वेटर होंगे उनको मोटा मोटा जनेऊ पहना के बड़ा सा तिलक लगा के ले आएंगे फिर तो आपको कोई समस्या नहीं होगी...?" तो बोले, "राम राम ई लड़िका की तउ पढ़ि लिख कई बुद्धि खराब हुइ गयी...राम राम राम राम..." ऐसा कहते हुए वो अपनी चुनौटी से तम्बाकू हथेली पर लेकर मसलते हुए मुझे और नजाने क्या क्या कहते हुए ...आखिर वो चले गए पर अब वो नहीं आएंगे हमारे यहाँ प्रीतिभोज में...उनका जनेऊ हमारे वेटर्स के जनेऊ से पतला जो हो जायेगा न! खैर कहानी ख़त्म! पर बात यहाँ खत्म नही होती, यहीं से शुरू होती है...क्या हरिजन या अन्य नीची जाति के लोग इंसान नहीं? क्या ऊपर वाले ने इनके साथ कोई भेदभाव किया है? सब कुछ वही तो दिया है उसने इन्हें भी जो अन्य जाति के लोगो को दिया तो हम कौन होते है जाति धर्म मजहब केनाम पर भेदभाव फैलाने वाले? सारे भारतीय एक सामान हैं!!!
सोच बदलो, देश बदलो! सब समान हैं, सब इंसान हैं...आओ हम सब समानता के वाहक बनें! जय हिन्द; जय भारत!!!
निवेदक- विजय शुक्ल बादल
9648466384
Tuesday, March 29, 2016
गौरैया
फुदक फुदककर चली आती थी बेख़ौफ़
आँगन में सूखते अनाज में से
चुगने अपने हिस्से के चन्द दाने!
आई है आज भी
फूस की मड़ैया और नीम के पेंड़ की तलाश में,
आखिर हारकर बैठ गयी है,
कंकरीट की फर्श पर रखे गमले में लगे कैक्टस पर!
आज उसकी चहचहाहट में
नहीं है पहले सा संगीत,
नहीं है कीर्तन का सा आभास,
बल्कि है वेदना एक तड़प!!!
शहरी ढांचे के अंधानुकरण से
बँट गए परिवार,
कट गए लोग संस्कारों से,
लुप्त हो गए आँगन!
अब! अति महत्वपूर्ण दिखने के इच्छुक हम प्रदर्शनप्रिय, सुविधाभोगी लोग,
नहीं सुखाते हैं
अनाज छतों पर!
खरीद लेते हैं आंटा-चावल के पैकेट,
गौरैया भूखी है!
नहीं पालते हैं मवेशी
नहीं भरते हैं उनके पीने को कुंडों में पानी,
गौरैया प्यासी है!
कीटनाशकों के प्रयोग ने कीटों को पहले ही किया ख़त्म,
गौरैया उदास है!
अरे! यह क्या?
किस डर से उड़कर भाग चली?
क्या? किसी ने प्यार से किसी बेटी को गौरैया कहा है!!!
गौरैया असुरक्षित है!
गौरैया उपेक्षित है!
गौरिया भूखी है!!
गौरैया प्यासी है!!
गौरैया बचाएं; सृष्टि बचाये!!!
निवेदक
©विजय शुक्ल बादल 9454943854
आँगन में सूखते अनाज में से
चुगने अपने हिस्से के चन्द दाने!
आई है आज भी
फूस की मड़ैया और नीम के पेंड़ की तलाश में,
आखिर हारकर बैठ गयी है,
कंकरीट की फर्श पर रखे गमले में लगे कैक्टस पर!
आज उसकी चहचहाहट में
नहीं है पहले सा संगीत,
नहीं है कीर्तन का सा आभास,
बल्कि है वेदना एक तड़प!!!
शहरी ढांचे के अंधानुकरण से
बँट गए परिवार,
कट गए लोग संस्कारों से,
लुप्त हो गए आँगन!
अब! अति महत्वपूर्ण दिखने के इच्छुक हम प्रदर्शनप्रिय, सुविधाभोगी लोग,
नहीं सुखाते हैं
अनाज छतों पर!
खरीद लेते हैं आंटा-चावल के पैकेट,
गौरैया भूखी है!
नहीं पालते हैं मवेशी
नहीं भरते हैं उनके पीने को कुंडों में पानी,
गौरैया प्यासी है!
कीटनाशकों के प्रयोग ने कीटों को पहले ही किया ख़त्म,
गौरैया उदास है!
अरे! यह क्या?
किस डर से उड़कर भाग चली?
क्या? किसी ने प्यार से किसी बेटी को गौरैया कहा है!!!
गौरैया असुरक्षित है!
गौरैया उपेक्षित है!
गौरिया भूखी है!!
गौरैया प्यासी है!!
गौरैया बचाएं; सृष्टि बचाये!!!
निवेदक
©विजय शुक्ल बादल 9454943854
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