शिक्षक कौन है?
वह, जो राष्ट्र के भविष्य (अर्थात बच्चों) के भविष्य का निर्माता है
अथवा वह,जो है असंतुष्ट,
अपने ही वर्तमान से?
वह, जो कभी बनकर रामकृष्ण परमहंस,
उपहार स्वरुप दे देता है,
जगती को विवेकानंद सरीखा व्यक्तित्व?
अथवा वह जो रहता है प्रतीक्षारत, संतुष्ट होने को,
शिक्षक दिवस पर छात्र-छात्राओं द्वारा दिए जाने वाले उपहारों के अभिदान से?
वह, जो कभी बनकर राधकृष्णन, राजकोष में कर देता है आधा वेतन दान?
अथवा वह,
जो लेकर पूरा वेतन
बनता जा रहा है राजकोष पर बोझ,
कर रहा है शिक्षण संहिता का अपमान?
शिक्षक है तो है ऑक्सफोर्ड
जो किसी जंगल में,
कुछ बच्चों के साथ,
चुनता है
ज्ञान की खोज की एक अनवरत यात्रा पर निकलना!
जिसकी बढ़ती प्रसिद्धि के चलते,
जब स्वयं राजा भी चाहता है उससे मिलना,
आर्थिक सहायता का सन्देश देकर भेजता है एक दूत,
किन्तु पाकर यह उत्तर, अस्वीकृति का भी,
हो जाता है अभिभूत,
"मैंने मेरे शिष्यों को कहा है कि ज्ञान होता है सबसे बड़ा!
आएंगे अगर आप, सम्मान में आपके होना होगा मुझे खड़ा,
इसलिए
हृदयतल से
स्वीकृत हैं आपकी सदिच्छाएं और शुभकामनाये,
किन्तु आपसे है निवेदन कृपा कर यहाँ न आएं!"
ऑक्सफोर्ड की अपने शिष्यों के प्रति समर्पण की भावना को देखकर,
होकर नतमस्तक राजा भेजता है यह प्रतिउत्तर,
'जो भगवान् से बड़ा है,
राजा से भी बड़ा रहेगा,
राजा अब आएगा अवश्य पर आपके सम्मान में स्वयं खड़ा रहेगा"
ये है शिक्षक जो सोच में इतना बड़ा और महान है,
फिर वह कौन है?
जिसे अपनी चारित्रिक मर्यादा तक का न ध्यान है,
शिक्षक क्यों सरकार अथवा प्रबंधसमिति की चिरौरी कर करता रहता है!
तुच्छ व्यक्तिगत लाभों की लालसा में अपने सम्मान की अवहेलना सहता रहता है!
माना की सरकारों/ प्रबंध समितियों में व्याप्त मक्कारी बहुत है,
तुझे भी अपने ढंग से जीने का अधिकार है,
पर रखना ध्यान,
बतौर शिक्षक तुझ पर ज़िम्मेदारी बहुत है...!
वह, जो राष्ट्र के भविष्य (अर्थात बच्चों) के भविष्य का निर्माता है
अथवा वह,जो है असंतुष्ट,
अपने ही वर्तमान से?
वह, जो कभी बनकर रामकृष्ण परमहंस,
उपहार स्वरुप दे देता है,
जगती को विवेकानंद सरीखा व्यक्तित्व?
अथवा वह जो रहता है प्रतीक्षारत, संतुष्ट होने को,
शिक्षक दिवस पर छात्र-छात्राओं द्वारा दिए जाने वाले उपहारों के अभिदान से?
वह, जो कभी बनकर राधकृष्णन, राजकोष में कर देता है आधा वेतन दान?
अथवा वह,
जो लेकर पूरा वेतन
बनता जा रहा है राजकोष पर बोझ,
कर रहा है शिक्षण संहिता का अपमान?
शिक्षक है तो है ऑक्सफोर्ड
जो किसी जंगल में,
कुछ बच्चों के साथ,
चुनता है
ज्ञान की खोज की एक अनवरत यात्रा पर निकलना!
जिसकी बढ़ती प्रसिद्धि के चलते,
जब स्वयं राजा भी चाहता है उससे मिलना,
आर्थिक सहायता का सन्देश देकर भेजता है एक दूत,
किन्तु पाकर यह उत्तर, अस्वीकृति का भी,
हो जाता है अभिभूत,
"मैंने मेरे शिष्यों को कहा है कि ज्ञान होता है सबसे बड़ा!
आएंगे अगर आप, सम्मान में आपके होना होगा मुझे खड़ा,
इसलिए
हृदयतल से
स्वीकृत हैं आपकी सदिच्छाएं और शुभकामनाये,
किन्तु आपसे है निवेदन कृपा कर यहाँ न आएं!"
ऑक्सफोर्ड की अपने शिष्यों के प्रति समर्पण की भावना को देखकर,
होकर नतमस्तक राजा भेजता है यह प्रतिउत्तर,
'जो भगवान् से बड़ा है,
राजा से भी बड़ा रहेगा,
राजा अब आएगा अवश्य पर आपके सम्मान में स्वयं खड़ा रहेगा"
ये है शिक्षक जो सोच में इतना बड़ा और महान है,
फिर वह कौन है?
जिसे अपनी चारित्रिक मर्यादा तक का न ध्यान है,
शिक्षक क्यों सरकार अथवा प्रबंधसमिति की चिरौरी कर करता रहता है!
तुच्छ व्यक्तिगत लाभों की लालसा में अपने सम्मान की अवहेलना सहता रहता है!
माना की सरकारों/ प्रबंध समितियों में व्याप्त मक्कारी बहुत है,
तुझे भी अपने ढंग से जीने का अधिकार है,
पर रखना ध्यान,
बतौर शिक्षक तुझ पर ज़िम्मेदारी बहुत है...!
बेहद उम्दा
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया🙏
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