Saturday, June 26, 2021

कहानी : मासूम ज़िद्दी तितली ©विजय शुक्ल बादल

 मासूम ज़िद्दी तितली


शाम की छुटपुट बौछारों के बाद अचानक खिली तेज़ धूप ने उमस बढ़ा दी थी। बारिश से कुछ ही समय पहले गाँव लौटा अभिज्ञान बैठक के कमरे में तेज़ी से चलते पंखे के नीचे भाभी के हाथ से बनी गर्म पकौड़ियों और चाय की चुस्की लेते हुए मन ही मन गर्मी को कोस रहा था! 

तभी अचानक उसने देखा कि एक पीले रंग की तितली शायद उसकी मेज़ पर रखी पीली-पीली पकौड़ियों को फूल समझकर उस पर बैठ गयी। पर पकौड़ियाँ गर्म थी और फूल जैसी तो बिल्कुल नहीं थी, शायद इसीलिए उसका भ्रम टूट गया और वो तेज़ी से कमरे में इधर इधर मँडराने लगी। अभिज्ञान, इस डर से कि कहीं वो मासूम तितली तेज़ी से घूमते पंखे की ज़द में न आ जाए, जल्दी से उठा और पंखे का स्विच ऑफ कर दिया। उसने बैठक के कमरे का बाहर का दरवाजा खोल दिया ताकि कमरे में मँडराती तितली उस दरवाजे से बाहर निकलकर न सिर्फ़ अपनी जान बचा सके बल्कि अपने सच्चे साथी रसभरे वास्तविक फूल तक पहुंच सके। पर तितली तो जैसे खुद को नासमझ सिद्ध करने की ज़िद पर अड़ी थी, कमरे की खिड़की के शीशे पर जाकर बैठ गयी। अभिज्ञान ने पहले सोचा कि अपनी उंगलियों से पकड़कर उसे उसकी मंज़िल तक पहुँचा दे पर फिर अपनी सख़्त उंगलियों और तितली के नाज़ुक पंखों का ख़्याल आते ही वो सहम उठा। उसने एक कपड़े से उस तितली को खिड़की से उड़ाकर खुले दरवाजे की तरफ ले जाने की कोशिश की। तितली उड़ी और पूरे कमरे में इधर उधर चक्कर लगाकर नीचे फर्श पर आकर बैठ गयी। 

पंखा बंद होने के कारण गर्मी बहुत बढ़ गयी थी। अभिज्ञान भी पसीने से लगभग तर हो चुका था। पर उसने भी हार नहीं मानी थी। उसने एक कागज का टुकड़ा फर्श पर तितली के पास रखा और धीरे धीरे तितली के नीचे सरकाता चला गया तितली को भी शायद कागज़ पर आने में कोई समस्या न हुई। तितली के कागज़ पर आते ही अभिज्ञान ने धीरे से कागज़ उठाया और खुले हुए दरवाजे से तितली को खुले आसमान की ओर उछाल दिया। तितली भी अपने खूबसूरत पीले चित्तीदार पंखों से कलाबाजियां करती हुई उड़ने लगी। पर यह क्या! इधर-उधर उड़कर तितली खुले दरवाजे से फिर से कमरे में रखी ठंडी हो चुकी पकौड़ियों पर जाकर बैठ गयी थी। अभिज्ञान उस मासूम तितली के इस अप्रत्याशित कृत्य से हतप्रभ अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गया। छत में लगा पंखा तेज़ी से दौड़ रहा था और सिर पर मंडराते इस ख़तरे से बेख़बर मासूम तितली न जाने पकौड़ियों को फूल समझ रही थी, या अपनी मूल प्रवृति से इतर पकौड़ियों को ही तरज़ीह दे रही थी। अभिज्ञान के दिल की धड़कने अचानक तेज़ हो गयीं, उसका चेहरा लटक गया। दरअसल इस मासूम तितली का यह बर्ताव उसे अंजलि की याद दिला गया था! अभिज्ञान ने ख़ुद को जैसे-तैसे सहज कर मन की बेचैनी काबू करते हुए पकौड़ियों की प्लेट हाथ में ले ली और सोचा ये प्लेट ही जाकर बाहर रख देगा। अंजलि के ख़्यालों में खोया अभिज्ञान पकौड़ियों की प्लेट बाहर रख आया था पर उसने बाद में ध्यान दिया कि वह मासूम तितली तेज़ी से चलते पंखे के नीचे बेपरवाही से परवाज़ भरे जा रही थी। गर्मी इतनी ज्यादा थी कि नादान तितली के लिए पंखा बंद करने का ख़याल भी अब अभिज्ञान को नादानी ही लगी। तितली को बचाने की तमाम नाकाम कोशिशों से आजिज़ आकर अभिज्ञान ने तय किया कि वह किसी की ज़िंदगी और मौत में कोई हस्तक्षेप करने की स्थिति में नहीं। जो ईश्वर की इच्छा होगी, वही होगा। अपने में ही खोया अभिज्ञान यही सोचकर ऊपर अपने कमरे में चला गया। रात भर तितली और अंजलि के सपनों ने उसे बेचैन रखा। सुबह आंख खुली तो अभिज्ञान को तितली का ख्याल आया। वो तेज़ी से नीचे बैठक के कमरे की ओर भागा। जल्दबाज़ी में जाने कैसे उसका पैर फिसला फिर उसके बाद क्या हुआ उसे ख़बर नहीं। जब उसकी आंख खुली तो दीवार घड़ी 9:25 बजा रही थी। घर के सब लोग उसे घेर कर बैठे थे। माँ ने पूछा, "अभिज्ञान ये सब क्या है, ये कैसी हालत बना रखी है, हुआ क्या है तुम्हें? बेहोश कैसे हो गए थे तुम"

"माँ वो तितली कहाँ है, कैसी है? वो उड़ गई क्या?" अभिज्ञान ने पूछा। 

"इस हालत में तुम उसकी फ़िक्र में हो और वो मासूम ज़िद्दी तितली भी अभी तक रोशनदान की जाली पर बैठी है,  मानों तुम्हारे ही इंतज़ार में..." अभिज्ञान ने गौर से देखा, उसे रोशनदान पर वो मासूम और ज़िद्दी तितली की जगह अंजलि ही दिख रही थी। एक गहरी साँस भरकर उसने आँखे बंद कर ली और दो नन्हीं बूंदें आँखों की कोर से ढुलककर तकिये में समां गयीं!

©विजय शुक्ल बादल


4 comments:

  1. मासूमियत...और ज़िद का कितना घनिष्ट रिश्ता है न।।
    बहुत अच्छी कहानी.../ संस्मरण/ लेख...।

    ReplyDelete
  2. हाँ बहना, ज़िद्दी तो मासूमियत ही हो सकती है,पर हर मासूमियत ज़िद्दी हो ज़रूरी नहीं।
    स्नेहिल प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु तुम्हारा हृदयतल से आभार बहन! सदैव प्रसन्नचित्तमस्तु!

    ReplyDelete
  3. ज़िद्दी मासूम तितली शायद फ़िर उड़ न सकी होगी....वो आती होगी उस रोशनदान पर मगर अब उसे देखकर उसे बचाना नामुमकिन सा होगा।

    ReplyDelete