"देखो काकी, अपने परिवार की खुशी के लिए गोकुल को जन्म देने आप घर की दहलीज पार कर अस्पताल गईं थीं न, वैसे ही लोकतंत्र के पावन पर्व चुनाव को सफल बनाने के लिए मजबूत और योग्य सरकार चुनने के लिए अपना वोट डालने घर से निकलकर मतदान केंद्र तक जाना ही होगा। अगर आधी आबादी मतदान वाले दिन घर पर बैठ गई तो अयोग्य नेतृत्व पाकर देश हार जाएगा।"
लगभग 2 साल बाद गुनगुन को अपने सामने देखकर काकी खुशी से फूली नहीं समाई। गुनगुन के गालों को अपने दोनों हाथों में भरकर बोली, "अरे वाह! मेरी गुन्नू कितनी बड़ी हो गई है और सुंदर भी।" गुनगुन मुस्कुरा दी। पिछली बार वह विधानसभा चुनाव में मतदान करने जब गांव आई थी, तभी काकी से मिली थी। दरअसल, गुनगुन का बचपन संयुक्त परिवार में काका–काकी, ताऊ–ताई के प्यार और दुलार के बीच शरारतें करते ही बीता था। आज भले ही वह दिल्ली के एक प्रतिष्ठित लॉ कॉलेज से एलएलबी के आखिरी साल में पढ़ाई कर रही है, पर काकी के लिए जैसे वह आज भी नन्ही गुन्नू ही है। काकी दुलराते हुए बोली, "बिटिया तुम्हारी पसंद का हलवा बना रही हूँ। बैठो अभी खिलाती हूँ। काकी ने गुनगुन को आंगन में पड़ी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। बैठते हुए गुनगुन ने पूछा, "पर काकी आज तो 13 मई है, लोकसभा चुनाव है। आप यहाँ किचन में क्या कर रही हैं?" काकी ने बेपरवाही से उत्तर दिया, हाँ तो? और कौन सा ऑफिस खुला है हमारे लिए?" गुनगुन समझाते हुए बोली, " अरे काकी, मेरा मतलब है वोट डालने नहीं गईं आप?" काकी , "तुम्हरे गुनगुन पर कम हलुए पर ज्यादा ध्यान देते हुए बोलती जा रही थी, "तुम्हरे काका और भाई गोकुल गए हैं न, वोट डालने, लौट कर आएंगे तो उन्हें गर्मागरम हलुआ खिलाऊंगी। तुम भी खाना, बस तैयार ही है।" गुनगुन ने आश्चर्य से कहा, "पर काकी वोट तो आपका भी है। आपको भी तो वोट डालने जाना चाहिए। मैं तो 500 किलोमीटर दूर दिल्ली से चलकर वोट डालने आई हूं। सुबह-सुबह वोट डाल भी आई!" गुनगुन अपनी तर्जनी उंगली पर लोकतंत्र की स्याही देखकर गर्व का अनुभव कर रही थी।
काकी ने गुनगुन की तर्जनी पर काली स्याही का निशान देखा और फिर जैसे कुछ सोचते हुए कड़ाही में पकते हलवे को कर्छी से चलाते हुए बोली, "हाँ बिटिया! वोट है तो हमारा भी, वोट वाली पर्ची भी आई थी। पर काका तुम्हारे डालने गए हैं न! अब हम इस उम्र में हम कहा कहाँ वोट डालने जाएं। वैसे भी तुम्हरे काका और हमारे बीच काम पहिले से ही बटे हुए हैं। बाहर के सारे काम तुम्हारा काका करते हैं और घर के सारे काम हम।" गुनगुन काकी का अजब गजब तर्क और ठिठौली सुनकर अपने बचपन के पुराने शरारती अंदाज़ में बोली, "काकी एक बात बताओगी; जब छोटा भाई गोकुल जन्म लेने वाला था और तुम बीमार पड़ी थी। तब अस्पताल तुम ही गई थी, या तुम्हारी जगह काका ही अस्पताल में भर्ती होकर गोकुल को जन्म दे दिए थे?" काकी मुस्कुरा कर बोली, "हाय दैया! कैसी बात करती हो बिटिया? पढ़ लिखि कै पगला गई हो का? तुम्हारे काका कैसे गोकुल को जन्म दे सकते थे, वह तो हमारी ही कोख से जन्म ले सकता था न।" गुनगुन काकी की इस बात पर समझाते हुए बोली, " देखो काकी, अपने परिवार की खुशी के लिए गोकुल को जन्म देने आप घर की दहलीज पार कर अस्पताल गईं थीं न, वैसे ही लोकतंत्र के पावन पर्व चुनाव को सफल बनाने के लिए मजबूत और योग्य सरकार चुनने के लिए अपना वोट डालने घर से निकलकर मतदान केंद्र तक जाना ही होगा। अगर आधी आबादी मतदान वाले दिन घर पर बैठ गई तो अयोग्य नेतृत्व पाकर देश हार जाएगा।" काकी गंभीर होकर बोली, "का कह रही हो बिटिया, ऐसे कैसे देश हार जायेगा? जिसकी बेटी तुम जैसी हो ऐसा हमारा देश कभी भी नहीं हार सकता। हलुआ बनकर तैयार है, तुम्हरे काका, तुम्हरे भाई गोकुल और तुम को हलवा अब वोट डालने के बाद, लौट के ही खिलाएंगे। ए बिटिया, चलो, अब पहिले हमका मतदान करवा लाओ।" गुनगुन काकी की ये बात सुनकर एकदम चहक उठी, " हाँ काकी, मैं अभी स्कूटी लेकर आती हूँ। फिर लौटकर आपके हाथ का स्वादिष्ट हलवा खाते हैं।" इतना कहकर वह गुनगुनाती हुई उछलती कूदती निकल गई, "पहले हम मतदान करेंगे, बाद उसके जलपान करेंगे।" |
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