“कर्फ्यू”
क्या! कर्फ्यू लग गया!! लखीमपुर खीरी में!!! वो शहर जो पूरे उत्तर प्रदेश में भाईचारे और अमनपसंदगी के लिए जाना जाता है, उस शहर में कर्फ्यू!!! टीवी स्क्रीन पर ये ख़बर देखकर भी यकीन नहीं हुआ तो ख़बर की सच्चाई पता करने के लिए चन्दर सड़क पर निकल आया! बाजार बंद, शटर गिरे हुए!! कुछ एक लोग इधर उधर बातचीत करते हुए नज़र आ रहे हैं। मोहल्ले के नुक्कड़ पर बारह तेरह लोग खड़े हैं। चन्दर माहौल का अंदाज़ा लगाने के लिए सड़क पर खड़े लोगों की बाते सुनने लगा। शहर के प्रमुख महाविद्यालय के प्रवक्ता सूरजभान श्रीवास्तव जी, एक सम्मानित व्यक्ति हैं शहर के, बोल रहे थे, "नहीं-नहीं ये ठीक नहीं है कि कोई ट्वेल्थ क्लास का लड़का कोई मूर्खता करे और हम समझदार लोग प्रतिक्रिया स्वरुप बड़ी मूर्खता करें और शहर का माहौल बिगाड़ दें। हमें लखीमपुर का माहौल बिगाड़ने वालों का साथ नहीं देना चाहिए चाहे वो किसी मज़हब के हों...चंद सिरफिरों के कारण सभी मुसलमान भाईयों को गुनहगार मान लेना कहाँ की समझदारी है...” बीच में ही बात को काटते हुए लाला बोल उठा, " तो सारी समझदारी का ठेका हम हिन्दुओं ने ही ले रखा है सर! क्या हिन्दू अपना...अपने देवी देवताओं का अपमान करने वाले को यूँ ही छोड़ दें! माफ़ कीजिये हम से अब और ये न हो सकेगा। वो उनके पैग़म्बर मोहम्मद साहब के ऊपर हुई ग़लत टिप्पड़ी पर इतना बवाल मचा देते हैं| क्या हमारे देवी देवताओं का अपमान, अपमान नहीं? उस लड़के को छोड़ा गया तो अच्छा नहीं होगा सर! अरे रोहन! बता न सर को, उस सूअर ने उस वीडियो मे जो कुछ कहा है वो सुनकर तो सर आप से भी न रहा जायेगा।" लाला के ऐसे तेवर तो सूरजभान जी ने कभी न देखे थे | माहौल को समझकर सभी को सम्बोधित करते हुए बोले, ‘देखिये पहले तो ऐसे किसी वीडियो की बात ही न हो अब, इससे हमारा...हमारे देवी देवताओं का सम्मान बढ़ थोड़े ही जायेगा! और लाला! ये कैसी भाषा सीख ली है तुमने? मेरे सामने भी...” लाला सूरजभान जी का बहुत सम्मान करता था उन्होंने उसे न सिर्फ पढाया था बल्कि समय समय पर उसका मार्गदर्शन भी करते रहते थे|
लाला वैसे तो मोहल्ले में एक मिलनसार लड़का माना जाता है, हर किसी के काम पर हर वक़्त हाज़िर...बस एक फ़ोन करने कि देरी है| पर इधर कुछ सालों से जबसे लाला पर राजनीति का बुखार चढ़ा है तब से स्वभाव में तैश कुछ ज्यादा ही रहने लगा है...खैर! चंदर चुपचाप सारी बातें सुन कर माहौल को समझने की कोशिश कर रहा था| तभी नंदू चाचा, नुक्कड़ पर चाय का ठेला लगाते हैं, बोल उठे, “ यो ससुर लखीमपुर मा त कबहूँ अइसा न भवा! हियाँ के नेता बढ़िया हइं, कुछु काम त न करत, तबहूं बढ़िया हइं, कबहूँ लखीमपुर का माहौल तउ न बिगाड़ा! पर अब इधर कछु ढाई तीन सालन ते याक अजब किसम केरी राजनीती शुरू भई है जो, हियाँ के माहौल का बिगाड़े धरे दे रही है... कछु नए नए नेता का उभर रहे हैं दुनहू पच्छन मा... ये इ सब बिगड़े माहौल का और बिगाड़े की कोसिस करि रहे हैं येहिमा इनका का जाने का लाभ है...अब अगर हम सब मिलि-जुलि के रहि रहे हैं तौ ये इनका हज़म न हुई रहा. अब काम धंधा सब चौपट दुई चार दिन की खातिर...”
तभी मोहल्ले के एक वकील साहब, आज सुबह सुबह ही थोड़ी लगा लिए थे शायद...घर का गेट खोलकर निकले और सीधे पब्लिक से रूबरू हुए, ‘ अरे भाई बात सिर्फ इत्ती सी है कि बात कुच्छ नहीं है...ही ही ही! और लाला सुनो! ऐसे समझो कि एक चूतिये ने एक चूतियापा किया, चन्द चूतियों ने दूसरा और सबसे बड़ा चुतियापा शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया! हा हा हा...’ “अरे वकील साहब तो आपको यहाँ आकर अपना चूतियापा सिद्ध करने का किसने निमंत्रण दिया है? बोलने कि तमीज़ नहीं है तो क्यों बोलते हैं आप? आप तो अपने घर ही जाओ...खुद सही से चला नही जा रहा और चले आये हैं हमे चलना सिखाने...” लाला कि त्योरियां चढ़ी देखकर चार पांच लड़के वकील साहब को उठाकर बइज्ज़त उन्हें उनके गेट के अन्दर रख आये| वकील साहब... कुछ पता नहीं क्या बडबडाते जा रहे थे, ‘अरे अरे! रुको, सुनो तो भाई, जरा ठहरो तो...
वकील साहब कि हरकत से लाला का मूड और ख़राब सा हो गया, “ अब और नहीं सहेंगे सर! अब फैसला होकर रहेगा!” पर सूरजभान जी बात को भांप न सके, ज़रा जोर से बोले, ‘क्या फैसला होकर रहेगा लाला? तुम भी! और ये वकील साहब! सुबह से ही शराब...हद है, नशे में कुछ भी बोल देते है! इनको तो पागल समझो...” लाला अब तैश में आ चुका था, “ किस किस को पागल समझें सर, लोकतंत्र का मतलब ये है क्या कि कोई कुछ भी बोल देगा यहाँ...मन चाहे जिसको जो गाली दो; कि तुम्हे अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता है! सर अपने यहाँ पागलों के दो ही इलाज़ होते हैं या तो उन्हें पागलखाने भेज दिया जाता है और अगर समाज को उनसे खतरा हो तो सीधे उपर वाले के पास...” गहमागहमी के माहौल का अहसास कर सूरजभान जी थोडा नरमी से काम लेते हुए बोले, ”देखो लाला! मै किसी भी संविधानेतर गतिविधि का कभी समर्थन नहीं कर सकता. वो लड़का तो पहले से ही गिरफ्तार किया जा चुका है, पुलिस ने भी उचित धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज करने का आश्वासन देकर उसे सीधे जेल भेज दिया है... बाकी उस पक्ष में भी सब शांत हैं अब, तो तुम लोग क्यूँ माहौल को ख़राब करना चाहते हो? अब तो जैसे लगता है कि तुम...तुम्हारे जैसे युवाओं के इसी उत्तेजक रवैये का नतीजा है कि शहर में एक अनिश्चितता का सा माहौल बना हुआ है|” “अच्छा, सारा माहौल तो हमने बिगाड़ा है सर! वो लोग तो साधू सन्यासी हैं न! वो कुछ भी कहें, कुछ भी करें और हम अगर अपने धर्म, अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए आवाज़ उठाये तो हम गलत हैं, साम्प्रदायिक हैं? ये कैसा धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है जहाँ हिन्दुओं के लिए धार्मिक समानता के अधिकार की बात करना साम्प्रदायिक हो जाता है? ऐसी धर्मं निरपेक्षता हमें रास नहीं आती सर! हम धार्मिक हैं, हमें अपना धर्म जान से भी प्यारा है!” कई लड़के एक साथ चिल्लाये, ‘लाला भैया सही कह रहे है सर! हर हर महादेव, जय महाकाल!!! “
इस सब शोर शराबे की बातचीत के कारण चालीस-पचास लोग इकट्ठे हो गए| सूरजभान जी समझ नहीं पा रहे थे कि क्या कहा जाये! कैसे समझाया जाये भीड़ को! भीड़ स्वाभाव से ही उग्र होती है| पढ़े लिखे समझदार लोग तक भीड़ का हिस्सा बनकर अक्सर भेड़ों जैसा और कभी कभी भेड़ियों जैसा व्यव्हार कर बैठते है! पर जनहित में लोगों को इंसान बने रहना ही होगा| ये समझना ही होगा कि हालात अगर कहीं बेकाबू हुए तो नुकसान सबका है! सवाल ये नहीं कि नुकसान किसका कम या ज्यादा होगा...दंगो का इतिहास है कि नुकसान चाहे हिन्दू का ज़्यादा हो या मुसलमान का, सबसे ज्यादा नुकसान इंसानियत का हुआ है| सूरजभान जी इसी चिंता में कुछ सोच न सके! हलक जैसे सूख सी गयी हो! उनका चिंताग्रस्त चेहरा देखकर अब चंदर से न रहा गया! बोल पड़ा, “ अगर आप लोगो की इजाज़त हो तो मैं कुछ कहना चाहता हूँ?” दर्शनशास्त्र का विद्यार्थी चन्दर मोहल्ले में अपनी ख़ामोशी के लिए जाना जाता था...अपने काम से काम...लिखने पढने का अभ्यस्त चंदर यूँ तो मोहल्ले की किसी गतिविधि से अधिकतर दूर ही रहता था| पर लाला वो सत्संग वाले दिन से उसकी बड़ी इज्ज़त करने लगा था| उस दिन चंदर धर्मं और राजनीती के जुड़ाव पर बोला था| लाला को ध्यान आया, उस दिन चंदर ने कहा था, ”राजनीति के साथ अगर धर्मं हो जाये तो देश का विकास होता है, परन्तु यदि धर्म के साथ राजनीति हो जाये तो सर्वनाश होता है...” इधर सारी घटनाक्रम से सशंकित सूरजभान सर उसे मना कर रहे हैं कि वहां का माहौल कही और न बिगड़ जाये ! पर चंदर है कि बोलना चाहता है, बड़ी सहजता से...एक सच्ची मगर सावधान मुस्कान के साथ चन्दन कहने लगा “देखिये माहौल को बनाना है तो किसी एक पक्ष को समझदारी दिखानी होती है...जिन शहरों में ऐसा नहीं होता, वहाँ आए दिन माहौल बिगड़ता रहता है, कर्फ्यू लगते रहते हैं| पश्चिमी उत्तर प्रदेश का हाल किसी से छिपा नहीं है! सही कह रहे थे नंदू चाचा, कुछ सालों से कुछ कथित धार्मिक गतिविधियाँ बढ़ी हैं अपने शहर में! अगर बारीकी से पूरे घटनाक्रम का विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि उन्ही बढ़ी गतिविधियों का परिणाम है ये वीडियो...! देखिये...हम सब मानते हैं कि धर्मं श्रद्धा का विषय है...!’ चंदर बोले जा रहा था, “श्रद्धा एक नितांत व्यग्तिगत भाव है अपने इष्ट के प्रति, इसके प्रदर्शन की क्या आवश्यकता? फिर मुझे ये समझ नहीं आता कि क्यूँ हिन्दू बुद्धिजीवी जो मुसलमानों के जुलूसों, सड़क पर नमाज़ का जन-असुविधा के नाम पर एक तरफ तो बड़ी आलोचना करते हैं, पर दूसरी तरफ, हनुमान-यात्रा और महाशिवरात्रि जैसे त्योहारों पर वैसे ही बड़े धार्मिक आयोजनों का बढचढ कर समर्थन करते दिखते हैं...देखिये धर्मं आस्था का विषय है, होड़ का नहीं! पर हम होड़ करने में लगे हैं! होड़ कि किसके त्यौहार पर शहर ज्यादा जगमगाएगा! किसके त्यौहार पर कितना भव्य आयोजन होगा! कितने ज्यादा लोग इकट्ठे हों सकेंगे...कभी कभी ये धर्मं कम, एक बड़े सफल धार्मिक गतिविधि का आयोजन कर शक्तिप्रदर्शन करने जैसा अधिक लगता है...जो अगली बार दूसरे पक्ष के एक और बड़े धार्मिक आयोजन के रूप में परिणत दिखाई देता है! जिस पक्ष का आयोजन कमतर रह जाये वो कुंठा में प्रतिक्रिया स्वरुप कुछ भी ऐसी उल-जुलूल हरकते तक कर बैठता है कि सौहार्द का वातावरण तक विषाक्त हो उठे...ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं...मैं तो आप सबसे हाथ जोड़कर यही अपील करूँगा कि धर्मं व्यक्तिगत श्रद्धा का विषय है प्रदर्शन से इसका कोई लेना देना नहीं! फिर भी जो भी व्यक्ति अपनी आस्था के अनुसार श्रद्धा पूर्वक जैसी धर्मिक गतिविधि करके ईश्वरीय अनुभूति प्राप्त कर सके वो वैसा ही करे| इसमें मुझे हस्तक्षेप करने का न तो कोई अधिकार है और न ही कोई औचित्य! पर क्या हम इतना ध्यान रख सकते हैं कि हमारी आस्था से सम्बंधित किसी भी गतिविधि से किसी अन्य कि आस्था को ठेस न पहुचे, किसी अन्य को कोई असुविधा न हो? अगर किसी धार्मिक गतिविधि से दिलो के बीच वैमनस्यता फैलती हो ऐसी धार्मिक गतिविधियों का क्या लाभ? धर्म के बारे में तो हमारे यहाँ ये भी कहा भी जाता है –आत्मन: प्रतिकूलानि परेषाम न समा चारेति! यानि जो व्यवहार आप दूसरो से अपने प्रति नहीं चाहते, वो व्यवहार दूसरों के साथ कभी न करें| अगर हमारे देश का सुप्रीम कोर्ट, जो अक्सर जनहित के मामलों में स्वतः संज्ञान लेकर हस्तक्षेप करता रहता है, काश इस मामले में भी हस्तक्षेप कर सके| ज़रा सोचिये! धर्मनिरपेक्ष भारतवर्ष में क्या ऐसा नहीं हो सकता कि धर्मं को मनुष्य और उस सर्वशक्तिमान के मध्य नितांत व्यक्तिगत विषय मानकर संविधानसम्मत व्यवस्था के माध्यम से उसे घरों, मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों, गुरुद्वारों की दहलीज़ तक सीमित कर दिया जाये और सड़क लोगों चलने के लिए छोड़ दी जाये? लोग पूरे सच्चे मन से अपने घरो में या मंदिर, मस्जिद गिरिजाघर, गुरूद्वारे में, अपने अपने तरीके से पूजा, इबादत, दुआएं, प्रार्थनाये करें! कोई सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं! काश! काश ऐसा हो जाये तो धर्म के नाम पर हमें बांटने वाले अधिकांश कथित राजनेताओं की सांप्रदायिक राजनीति को विराम लग जाये| अगर ऐसा हो सके तो मुझे लगता है कि हमारे देश में साम्प्रदायिक दंगे इतिहास मात्र बनकर रह जायेंगे!”
चंदर अपने कल्पना लोक में खोया अपने सूरजभान सर से मुखातिब हो अनवरत बोले जा रहा था! पर अभी उसने ध्यान दिया, उनके और चार छः लोगों के सिवा और कोई वहा सुनने वाला नहीं बचा था, लाला और अन्य लोग एक-एक कर कबके जा चुके थे...सूरजभान जी हतप्रभ से चंदर को देख रहे थे! उसके कंधे पर हाथ रखकर बोले, “चन्दर! तुम सही कह रहे हो शायद! पर तुम उन लोगों के सामने हीरे मोती लुटा रहे हो जो एक तरह की भूंख से परेशान हैं, इन्हें इनकी रोटी चाहिए...तुम्हारा ये दर्शानात्मक व्याख्यान इनके लिए कंकर-पत्थर से अधिक नहीं...”
तभी पुलिस के साईरन कि आवाज़ सुनकर बचे खुचे लोग हडबडाहट में अपने-अपने घर की ओर तेज़ी से जाने लगे| चंदर गुरूजी को प्रणाम कर वहां से चुपचाप... मायूस... हताश घर की तरफ़ चल पड़ा! अपने में ही गुमसुम सा...चंदर! कुछ एक कदम ही तो आगे बढ़ा था गली में, कि सामने से जगदीप, चंदर के कॉलेज का दोस्त, अभी एक प्राइवेट स्कूल में पढाता है, आता हुआ नज़र आया| मज़ाक की मुद्रा में बोल उठा, “अरे चंदर! कहाँ जा रहे हो? हारे हुए खिलाड़ी! काहे, मुंह काहे लटकाए हुए हो? चंदर के मुंह से धीरे से निकला, “ कर्फ्यू” जगदीप हँसते हुए बोला, “हाँ यार बड़ी मुश्किल से एक छुट्टी मिली है...देखो यार! कर्फ्यू दो चार दिन और चल जाये तो मज़ा आ जाये!” चंदर खुले मुंह से उसे ताकता रह गया और वो तेज़ी से कदम भरते हुए सुनसान गली से गायब हो गया| सूनी गली...शून्य में निहारती चंदर की सूनी आँखें... ज़हन में विचारों का कर्फ्यू...
---विजय शुक्ल बादल
क्या! कर्फ्यू लग गया!! लखीमपुर खीरी में!!! वो शहर जो पूरे उत्तर प्रदेश में भाईचारे और अमनपसंदगी के लिए जाना जाता है, उस शहर में कर्फ्यू!!! टीवी स्क्रीन पर ये ख़बर देखकर भी यकीन नहीं हुआ तो ख़बर की सच्चाई पता करने के लिए चन्दर सड़क पर निकल आया! बाजार बंद, शटर गिरे हुए!! कुछ एक लोग इधर उधर बातचीत करते हुए नज़र आ रहे हैं। मोहल्ले के नुक्कड़ पर बारह तेरह लोग खड़े हैं। चन्दर माहौल का अंदाज़ा लगाने के लिए सड़क पर खड़े लोगों की बाते सुनने लगा। शहर के प्रमुख महाविद्यालय के प्रवक्ता सूरजभान श्रीवास्तव जी, एक सम्मानित व्यक्ति हैं शहर के, बोल रहे थे, "नहीं-नहीं ये ठीक नहीं है कि कोई ट्वेल्थ क्लास का लड़का कोई मूर्खता करे और हम समझदार लोग प्रतिक्रिया स्वरुप बड़ी मूर्खता करें और शहर का माहौल बिगाड़ दें। हमें लखीमपुर का माहौल बिगाड़ने वालों का साथ नहीं देना चाहिए चाहे वो किसी मज़हब के हों...चंद सिरफिरों के कारण सभी मुसलमान भाईयों को गुनहगार मान लेना कहाँ की समझदारी है...” बीच में ही बात को काटते हुए लाला बोल उठा, " तो सारी समझदारी का ठेका हम हिन्दुओं ने ही ले रखा है सर! क्या हिन्दू अपना...अपने देवी देवताओं का अपमान करने वाले को यूँ ही छोड़ दें! माफ़ कीजिये हम से अब और ये न हो सकेगा। वो उनके पैग़म्बर मोहम्मद साहब के ऊपर हुई ग़लत टिप्पड़ी पर इतना बवाल मचा देते हैं| क्या हमारे देवी देवताओं का अपमान, अपमान नहीं? उस लड़के को छोड़ा गया तो अच्छा नहीं होगा सर! अरे रोहन! बता न सर को, उस सूअर ने उस वीडियो मे जो कुछ कहा है वो सुनकर तो सर आप से भी न रहा जायेगा।" लाला के ऐसे तेवर तो सूरजभान जी ने कभी न देखे थे | माहौल को समझकर सभी को सम्बोधित करते हुए बोले, ‘देखिये पहले तो ऐसे किसी वीडियो की बात ही न हो अब, इससे हमारा...हमारे देवी देवताओं का सम्मान बढ़ थोड़े ही जायेगा! और लाला! ये कैसी भाषा सीख ली है तुमने? मेरे सामने भी...” लाला सूरजभान जी का बहुत सम्मान करता था उन्होंने उसे न सिर्फ पढाया था बल्कि समय समय पर उसका मार्गदर्शन भी करते रहते थे|
लाला वैसे तो मोहल्ले में एक मिलनसार लड़का माना जाता है, हर किसी के काम पर हर वक़्त हाज़िर...बस एक फ़ोन करने कि देरी है| पर इधर कुछ सालों से जबसे लाला पर राजनीति का बुखार चढ़ा है तब से स्वभाव में तैश कुछ ज्यादा ही रहने लगा है...खैर! चंदर चुपचाप सारी बातें सुन कर माहौल को समझने की कोशिश कर रहा था| तभी नंदू चाचा, नुक्कड़ पर चाय का ठेला लगाते हैं, बोल उठे, “ यो ससुर लखीमपुर मा त कबहूँ अइसा न भवा! हियाँ के नेता बढ़िया हइं, कुछु काम त न करत, तबहूं बढ़िया हइं, कबहूँ लखीमपुर का माहौल तउ न बिगाड़ा! पर अब इधर कछु ढाई तीन सालन ते याक अजब किसम केरी राजनीती शुरू भई है जो, हियाँ के माहौल का बिगाड़े धरे दे रही है... कछु नए नए नेता का उभर रहे हैं दुनहू पच्छन मा... ये इ सब बिगड़े माहौल का और बिगाड़े की कोसिस करि रहे हैं येहिमा इनका का जाने का लाभ है...अब अगर हम सब मिलि-जुलि के रहि रहे हैं तौ ये इनका हज़म न हुई रहा. अब काम धंधा सब चौपट दुई चार दिन की खातिर...”
तभी मोहल्ले के एक वकील साहब, आज सुबह सुबह ही थोड़ी लगा लिए थे शायद...घर का गेट खोलकर निकले और सीधे पब्लिक से रूबरू हुए, ‘ अरे भाई बात सिर्फ इत्ती सी है कि बात कुच्छ नहीं है...ही ही ही! और लाला सुनो! ऐसे समझो कि एक चूतिये ने एक चूतियापा किया, चन्द चूतियों ने दूसरा और सबसे बड़ा चुतियापा शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया! हा हा हा...’ “अरे वकील साहब तो आपको यहाँ आकर अपना चूतियापा सिद्ध करने का किसने निमंत्रण दिया है? बोलने कि तमीज़ नहीं है तो क्यों बोलते हैं आप? आप तो अपने घर ही जाओ...खुद सही से चला नही जा रहा और चले आये हैं हमे चलना सिखाने...” लाला कि त्योरियां चढ़ी देखकर चार पांच लड़के वकील साहब को उठाकर बइज्ज़त उन्हें उनके गेट के अन्दर रख आये| वकील साहब... कुछ पता नहीं क्या बडबडाते जा रहे थे, ‘अरे अरे! रुको, सुनो तो भाई, जरा ठहरो तो...
वकील साहब कि हरकत से लाला का मूड और ख़राब सा हो गया, “ अब और नहीं सहेंगे सर! अब फैसला होकर रहेगा!” पर सूरजभान जी बात को भांप न सके, ज़रा जोर से बोले, ‘क्या फैसला होकर रहेगा लाला? तुम भी! और ये वकील साहब! सुबह से ही शराब...हद है, नशे में कुछ भी बोल देते है! इनको तो पागल समझो...” लाला अब तैश में आ चुका था, “ किस किस को पागल समझें सर, लोकतंत्र का मतलब ये है क्या कि कोई कुछ भी बोल देगा यहाँ...मन चाहे जिसको जो गाली दो; कि तुम्हे अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता है! सर अपने यहाँ पागलों के दो ही इलाज़ होते हैं या तो उन्हें पागलखाने भेज दिया जाता है और अगर समाज को उनसे खतरा हो तो सीधे उपर वाले के पास...” गहमागहमी के माहौल का अहसास कर सूरजभान जी थोडा नरमी से काम लेते हुए बोले, ”देखो लाला! मै किसी भी संविधानेतर गतिविधि का कभी समर्थन नहीं कर सकता. वो लड़का तो पहले से ही गिरफ्तार किया जा चुका है, पुलिस ने भी उचित धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज करने का आश्वासन देकर उसे सीधे जेल भेज दिया है... बाकी उस पक्ष में भी सब शांत हैं अब, तो तुम लोग क्यूँ माहौल को ख़राब करना चाहते हो? अब तो जैसे लगता है कि तुम...तुम्हारे जैसे युवाओं के इसी उत्तेजक रवैये का नतीजा है कि शहर में एक अनिश्चितता का सा माहौल बना हुआ है|” “अच्छा, सारा माहौल तो हमने बिगाड़ा है सर! वो लोग तो साधू सन्यासी हैं न! वो कुछ भी कहें, कुछ भी करें और हम अगर अपने धर्म, अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए आवाज़ उठाये तो हम गलत हैं, साम्प्रदायिक हैं? ये कैसा धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है जहाँ हिन्दुओं के लिए धार्मिक समानता के अधिकार की बात करना साम्प्रदायिक हो जाता है? ऐसी धर्मं निरपेक्षता हमें रास नहीं आती सर! हम धार्मिक हैं, हमें अपना धर्म जान से भी प्यारा है!” कई लड़के एक साथ चिल्लाये, ‘लाला भैया सही कह रहे है सर! हर हर महादेव, जय महाकाल!!! “
इस सब शोर शराबे की बातचीत के कारण चालीस-पचास लोग इकट्ठे हो गए| सूरजभान जी समझ नहीं पा रहे थे कि क्या कहा जाये! कैसे समझाया जाये भीड़ को! भीड़ स्वाभाव से ही उग्र होती है| पढ़े लिखे समझदार लोग तक भीड़ का हिस्सा बनकर अक्सर भेड़ों जैसा और कभी कभी भेड़ियों जैसा व्यव्हार कर बैठते है! पर जनहित में लोगों को इंसान बने रहना ही होगा| ये समझना ही होगा कि हालात अगर कहीं बेकाबू हुए तो नुकसान सबका है! सवाल ये नहीं कि नुकसान किसका कम या ज्यादा होगा...दंगो का इतिहास है कि नुकसान चाहे हिन्दू का ज़्यादा हो या मुसलमान का, सबसे ज्यादा नुकसान इंसानियत का हुआ है| सूरजभान जी इसी चिंता में कुछ सोच न सके! हलक जैसे सूख सी गयी हो! उनका चिंताग्रस्त चेहरा देखकर अब चंदर से न रहा गया! बोल पड़ा, “ अगर आप लोगो की इजाज़त हो तो मैं कुछ कहना चाहता हूँ?” दर्शनशास्त्र का विद्यार्थी चन्दर मोहल्ले में अपनी ख़ामोशी के लिए जाना जाता था...अपने काम से काम...लिखने पढने का अभ्यस्त चंदर यूँ तो मोहल्ले की किसी गतिविधि से अधिकतर दूर ही रहता था| पर लाला वो सत्संग वाले दिन से उसकी बड़ी इज्ज़त करने लगा था| उस दिन चंदर धर्मं और राजनीती के जुड़ाव पर बोला था| लाला को ध्यान आया, उस दिन चंदर ने कहा था, ”राजनीति के साथ अगर धर्मं हो जाये तो देश का विकास होता है, परन्तु यदि धर्म के साथ राजनीति हो जाये तो सर्वनाश होता है...” इधर सारी घटनाक्रम से सशंकित सूरजभान सर उसे मना कर रहे हैं कि वहां का माहौल कही और न बिगड़ जाये ! पर चंदर है कि बोलना चाहता है, बड़ी सहजता से...एक सच्ची मगर सावधान मुस्कान के साथ चन्दन कहने लगा “देखिये माहौल को बनाना है तो किसी एक पक्ष को समझदारी दिखानी होती है...जिन शहरों में ऐसा नहीं होता, वहाँ आए दिन माहौल बिगड़ता रहता है, कर्फ्यू लगते रहते हैं| पश्चिमी उत्तर प्रदेश का हाल किसी से छिपा नहीं है! सही कह रहे थे नंदू चाचा, कुछ सालों से कुछ कथित धार्मिक गतिविधियाँ बढ़ी हैं अपने शहर में! अगर बारीकी से पूरे घटनाक्रम का विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि उन्ही बढ़ी गतिविधियों का परिणाम है ये वीडियो...! देखिये...हम सब मानते हैं कि धर्मं श्रद्धा का विषय है...!’ चंदर बोले जा रहा था, “श्रद्धा एक नितांत व्यग्तिगत भाव है अपने इष्ट के प्रति, इसके प्रदर्शन की क्या आवश्यकता? फिर मुझे ये समझ नहीं आता कि क्यूँ हिन्दू बुद्धिजीवी जो मुसलमानों के जुलूसों, सड़क पर नमाज़ का जन-असुविधा के नाम पर एक तरफ तो बड़ी आलोचना करते हैं, पर दूसरी तरफ, हनुमान-यात्रा और महाशिवरात्रि जैसे त्योहारों पर वैसे ही बड़े धार्मिक आयोजनों का बढचढ कर समर्थन करते दिखते हैं...देखिये धर्मं आस्था का विषय है, होड़ का नहीं! पर हम होड़ करने में लगे हैं! होड़ कि किसके त्यौहार पर शहर ज्यादा जगमगाएगा! किसके त्यौहार पर कितना भव्य आयोजन होगा! कितने ज्यादा लोग इकट्ठे हों सकेंगे...कभी कभी ये धर्मं कम, एक बड़े सफल धार्मिक गतिविधि का आयोजन कर शक्तिप्रदर्शन करने जैसा अधिक लगता है...जो अगली बार दूसरे पक्ष के एक और बड़े धार्मिक आयोजन के रूप में परिणत दिखाई देता है! जिस पक्ष का आयोजन कमतर रह जाये वो कुंठा में प्रतिक्रिया स्वरुप कुछ भी ऐसी उल-जुलूल हरकते तक कर बैठता है कि सौहार्द का वातावरण तक विषाक्त हो उठे...ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं...मैं तो आप सबसे हाथ जोड़कर यही अपील करूँगा कि धर्मं व्यक्तिगत श्रद्धा का विषय है प्रदर्शन से इसका कोई लेना देना नहीं! फिर भी जो भी व्यक्ति अपनी आस्था के अनुसार श्रद्धा पूर्वक जैसी धर्मिक गतिविधि करके ईश्वरीय अनुभूति प्राप्त कर सके वो वैसा ही करे| इसमें मुझे हस्तक्षेप करने का न तो कोई अधिकार है और न ही कोई औचित्य! पर क्या हम इतना ध्यान रख सकते हैं कि हमारी आस्था से सम्बंधित किसी भी गतिविधि से किसी अन्य कि आस्था को ठेस न पहुचे, किसी अन्य को कोई असुविधा न हो? अगर किसी धार्मिक गतिविधि से दिलो के बीच वैमनस्यता फैलती हो ऐसी धार्मिक गतिविधियों का क्या लाभ? धर्म के बारे में तो हमारे यहाँ ये भी कहा भी जाता है –आत्मन: प्रतिकूलानि परेषाम न समा चारेति! यानि जो व्यवहार आप दूसरो से अपने प्रति नहीं चाहते, वो व्यवहार दूसरों के साथ कभी न करें| अगर हमारे देश का सुप्रीम कोर्ट, जो अक्सर जनहित के मामलों में स्वतः संज्ञान लेकर हस्तक्षेप करता रहता है, काश इस मामले में भी हस्तक्षेप कर सके| ज़रा सोचिये! धर्मनिरपेक्ष भारतवर्ष में क्या ऐसा नहीं हो सकता कि धर्मं को मनुष्य और उस सर्वशक्तिमान के मध्य नितांत व्यक्तिगत विषय मानकर संविधानसम्मत व्यवस्था के माध्यम से उसे घरों, मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों, गुरुद्वारों की दहलीज़ तक सीमित कर दिया जाये और सड़क लोगों चलने के लिए छोड़ दी जाये? लोग पूरे सच्चे मन से अपने घरो में या मंदिर, मस्जिद गिरिजाघर, गुरूद्वारे में, अपने अपने तरीके से पूजा, इबादत, दुआएं, प्रार्थनाये करें! कोई सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं! काश! काश ऐसा हो जाये तो धर्म के नाम पर हमें बांटने वाले अधिकांश कथित राजनेताओं की सांप्रदायिक राजनीति को विराम लग जाये| अगर ऐसा हो सके तो मुझे लगता है कि हमारे देश में साम्प्रदायिक दंगे इतिहास मात्र बनकर रह जायेंगे!”
चंदर अपने कल्पना लोक में खोया अपने सूरजभान सर से मुखातिब हो अनवरत बोले जा रहा था! पर अभी उसने ध्यान दिया, उनके और चार छः लोगों के सिवा और कोई वहा सुनने वाला नहीं बचा था, लाला और अन्य लोग एक-एक कर कबके जा चुके थे...सूरजभान जी हतप्रभ से चंदर को देख रहे थे! उसके कंधे पर हाथ रखकर बोले, “चन्दर! तुम सही कह रहे हो शायद! पर तुम उन लोगों के सामने हीरे मोती लुटा रहे हो जो एक तरह की भूंख से परेशान हैं, इन्हें इनकी रोटी चाहिए...तुम्हारा ये दर्शानात्मक व्याख्यान इनके लिए कंकर-पत्थर से अधिक नहीं...”
तभी पुलिस के साईरन कि आवाज़ सुनकर बचे खुचे लोग हडबडाहट में अपने-अपने घर की ओर तेज़ी से जाने लगे| चंदर गुरूजी को प्रणाम कर वहां से चुपचाप... मायूस... हताश घर की तरफ़ चल पड़ा! अपने में ही गुमसुम सा...चंदर! कुछ एक कदम ही तो आगे बढ़ा था गली में, कि सामने से जगदीप, चंदर के कॉलेज का दोस्त, अभी एक प्राइवेट स्कूल में पढाता है, आता हुआ नज़र आया| मज़ाक की मुद्रा में बोल उठा, “अरे चंदर! कहाँ जा रहे हो? हारे हुए खिलाड़ी! काहे, मुंह काहे लटकाए हुए हो? चंदर के मुंह से धीरे से निकला, “ कर्फ्यू” जगदीप हँसते हुए बोला, “हाँ यार बड़ी मुश्किल से एक छुट्टी मिली है...देखो यार! कर्फ्यू दो चार दिन और चल जाये तो मज़ा आ जाये!” चंदर खुले मुंह से उसे ताकता रह गया और वो तेज़ी से कदम भरते हुए सुनसान गली से गायब हो गया| सूनी गली...शून्य में निहारती चंदर की सूनी आँखें... ज़हन में विचारों का कर्फ्यू...
---विजय शुक्ल बादल
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